Puranmal Ki Kahani: जाने पूरणमल कैसे बने बाबा सिद्ध श्री चौरंगीनाथ

Puranmal
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आओ दोस्तों आपको दर्शन करवाते है, बाबा पूरणमल के। इनका मंदिर IMT मानेसर में मारुती सुजुकी कंपनी के पास कसान गांव की एक ऊँची पहाड़ी पर है। यह मंदिर बहुत ही सुन्दर है। मुझे विश्वास है, आपको यह जानकारी बहुत अच्छी लगेगी। आप में से बहुत से लोगो को यह पता भी नहीं होगा की बाबा Puranmal का एक मंदिर दिल्ली के नजदीक मानेसर में ही है और यहाँ बाबा पूरणमल का मेला भी लगता है। बाबा पूरणमल के बहुत से भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते है। तो चलिए दोस्तों जानते है बाबा Puranmal की कहानी के बारे में इसके अलावा हम ये भी जानेंगे की वो कैसे बने बाबा सिद्ध श्री चौरंगीनाथ।

पूर्ण भगत पूरणमल की कथा (Baba Puranmal Ki Kahani)

बाबा पूरणमल का जन्म

प्राचीन समय 1608 की बात है। पंजाब एक शहर का नाम था सियालकोट वहा के राजा का नाम शालीवाहन था। राजा शालीवाहन बहुत ही धर्मपारायण एवं न्यायकारी राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। राजा साहब की दो रानियाँ थी इच्छरादे और न्यूनादे (लुनादे)। किन्तु दोनों ही रानियों से उनको कोई संतान नहीं हुई।

राजा बहुत दुखी  रहने लगे। तब राजपुरोहित और मंत्रीगण की समझने पर उन्होंने पुत्रेष्टी यज्ञ करवाया। जिसके फल स्वरूप उन्हें बड़ी रानी इच्छरादे से पुत्र हुआ जिसका नाम पूरन रखा गया।

जब पूरन ने जन्म लिया तो राजा जी ने पुरोहित और विद्वानों को बुलाया और उसकी जन्म कुंडली बनवायी और उनका भविस्य पूछा इस पर जब विद्वानों ने कुंडली पढ़ी तो उनके पसीने छूट गए।विद्वानों ने राजा जी से कहा की हे! राजा यह बालक आपके लिए १२ वर्ष तक बहुत ही भारी है कृपया आप इससे १२ साल तक दूर रहे और इसका मुँह न देखे। किन्तु यह बालक महातेजस्वी है और इसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैलेगी।

राजा ने सबकी बात मान ली और बालक को जंगल में भेज दिया परन्तु उसके लालन पालन की पूरी व्यवस्था भी लगा दी।  बालक पूरण ने जंगल में रहते हुऐ ही अध्ययन किया तथा  शस्त्र-शास्त्रों में पूर्ण निपुर्णता हासिल की।

 बाबा पूरणमल को मिला मृत्युदंड

जब बालक पूरन १२ वर्ष की बाद महल वापस आये तो उनका राजा ने अच्छे से स्वागत किया और उनको उनकी दोनों माताओ की पास भेज दिया। बालक पूरन महल में अपनी मां इच्छरादे से मिले तो वह बहुत खुश हुई, परन्तु जब बालक पूरन अपनी छोटी माता(मोसी) न्यूनादे के पास गए और उन्हें प्रणाम किया तो न्यूनादे उनकी सुंदरता पर मोहित हो गयी चूकि राजा बूढ़े हो गए थे और छोटी रानी बहुत जवान थी।

वह कामवासना से वशीभूत हो गयी और उसने बालक पूरन से अनैतिक कार्य करने का दबाव डाला जिस पर बालक ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया की वह तो उसकी माता है और वह कोई गलत काम नहीं कर सकते। इस बात पर राणी न्यूनादे को अपना अपमान लगा और उसने इस अपमान का बदला लेने का फैसला लिया।

फिर एक दिन मौका पाकर रानी न्यूनादे ने राजा शालीवाहन के सामने Puranmal पर झूठा आरोप लगा दिया और कहा कि आपके पुत्र की नियत मुझ पर ख़राब हो गयी है और वह मेरे साथ गलत काम करना चाहता है और वह बहुत ही कामुक, विलासी है। उसने मेरा शीलभंग करने की कोशिस की, इस बात पर राजा बहुत क्रोध मैं आ गया और उस रानी की बातो में आकर और कोई भी जांच-पड़ताल किये बिना ही राजकुमार को मृत्युदंड दे दिया।

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बाबा पूरणमल और बाबा गुरु गोरखनाथ का मिलन

मृत्युदंड की सजा देने की लिए जब जल्लाद बाबा पूरन को जंगल लेकर गए तो उनका तेज देखकर जल्लाद का मन पसीज गया और वह बालक को जिन्दा ही कुए फेंककर चले आये और राजा को बोल दिया की राजकुमार का वध कर दिया है।

जिस दिन जल्लाद राजकुमार को कुए में फेंक कर गए उसी दिन संयोग से गुरु गोरखनाथ जी उसी रास्ते से गुजर रहे थे और उन्होंने उसी जंगल में रुकने का फैसला लिया। गुरु गोरखनाथ जी ने अपने शिष्यो के साथ उसी कुए के पास अपना डेरा डाल दिया।

गुरु गोरखनाथ ने अपने एक शिष्य से जल लाने को कहा। गुरु की आज्ञा पाकर वह पानी भरने के लिए उसी कुएं पर गए और पानी निकालने का प्रयास करने लगे, लेकिन उनके सभी प्रयास विफल रहे,  तब उन्होंने वापस जाकर गुरु गोरखनाथ को पूरी बात बताई, तब गुरु गोरखनाथ जी उस कुएं के पास गए और अपनी योगमाया का इस्तेमाल किया, जिससे उन्हें उस कुए में पड़े युवक के बारे में पता चला, त्रिकालदर्शी गुरु गोरखनाथ ने अपने योगबल से बालक Puranmal को कुए से बहार निकाला।

बेहोशी की हालत से होश में आते ही पूरनमल ने गुरु गोरखनाथ को प्रणाम किया और अपने साथ घटी पूरी घटना बताई और उनसे गुरु गोरखनाथ को उनका  शिष्य बनाने का अनुरोध किया। हठयोगी गुरु गोरखनाथ को एहसास हुआ कि यह बालक कोई साधारण मनुष्य नहीं है और उन्होंने पूरनमल को अपना शिष्य बना लिया, गुरु के तेजोमय स्पर्श से घायल पूरन बिल्कुल ठीक हो गया। इस प्रकार पूरन को अपने जीवन का उद्देश्य मिल गया।

बाबा पूरणमल का रानी सुंदरा से विवाह

एक बार गुरु गोरखनाथ और बाबा पूरनमल जी देश भर में घूमते हुए रानी सुन्दरा के राज्य में पहुँचे। रानी सुंदरा बहुत ही क्रूर और अत्याचारी थी, उसको भिक्षा मांगने वाले साधु-संतों को मारने में बड़ा आनंद आता था और उसने हजारों साधु-संतों की हत्या भी कर दी थी।

गुरु गोरखनाथ ने पूरनमल को समझाया कि वह इस राज्य में भिक्षा लेने न जाये। लेकिन बाबा पूरनमल को यह बात नागवार गुजरी क्योंकि गुरु और गुरुमंडली के भोजन की जिम्मेदारी उसी की थी, बाबा पूरनमल अपने गुरु गोरखनाथ के लिए भोजन की व्यवस्था करने के लिए रानी सुंदरा के महल में पहुंच गए। जब बाबा Puranmal महल के दरवाजे पर पहुंचे तो दरवाजे पर तैनात कोतवाल ने भी बाबा Puranmal को आगाह करते हुए कहा, ‘अरे! साधु तुम्हे पता है रानी  सुंदरा हर योगी  के प्राणों की प्यासी है’ वह तुम्हे भी मार देंगी,  क्यो अपनी जान गवाना चाहा रहा है, जा भाग जा यहाँ से। तब बाबा पूजनमल ने जबाव देते हुए कहा, ’जोगी को मरने-जीने की चाहत नहीं होती’, मुझे भिक्षा लेनी है वो भी इसी महल से। कोतवाल ने ये समाचार रानी जी को दिया।

रानी सुंदरा भी बाबा के सामने हाथ में तलवार लेकर पहुंची, परन्तु जैसे ही रानी सुंदरा की नजर बाबा Puranmal पर पड़ी तो बाबा के दिव्य तेज के कारण बेहोश हो गई।

कुछ देर बाद जब रानी सुंदरा को फिर से होश आया तो बाबा पूरनमल ने पूछा, “तुम इस तरह निर्दोष साधुओं को क्यों मारते हो? यह कृत्य तुम्हें पाप का भागीदार बनाता है। तब सुंदरा ने हाथ जोड़कर कहा -हे! दिव्य पुरुष” मुझे बताया गया है कि मेरी शादी एक योगी (साधु) से ही हो सकती है जो एक शाही परिवार से होगा, अब मुझे कैसे पता चलेगा कि कौन सा साधु शाही परिवार से है? यही कारण है कि मैंने अपने क्षेत्र में आने वाले साधुओं को मारना शुरू कर दिया! अब मुझे विश्वास हो गया है कि आप एक शाही परिवार से हैं, इसलिए हे योगी मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ।

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तब पूरन ने कहा, “रानी जी! हम योगी हैं, यह काम उन लोगों के लिए है जो पारिवारिक जीवन जीते हैं, इसलिए अब आप भिक्षा दें और मेरी सहायता करो, मेरे गुरु गोरखनाथ और मेरे गुरु भाई भोजन के लिए परेशान बैठे हैं।

सुंदरा को गुरु गोरखनाथ के बारे में पता था, उसने बाबा पूरन ने विनती की कि मुझे आप एक बार अपने गुरु गोरखनाथ के दर्शन करवा दीजिये। यह कहकर वह महल में गयी और उत्तम भोजन लेकर बाबा पूरन के साथ गुरु गोरखनाथ के सामने उपस्थित हुई। सुंदरा ने सबका विधिवत सत्कार किया जिस पर गुरु गोरखनाथ बहुत संतुष्ट थे और उन्होंने सुंदरा से कुछ मांगने का कहा । सुंदरा ने हाथ जोड़कर कहा- योगिराज! मेरा विवाह पूरनमल से करा दें, यही मेरी अभिलाषा है।

गुरुदेव की आज्ञा पाकर पूरन ने सुन्दरा से विवाह किया और उसके महल में आ गया। परन्तु  बाबा पूरनमल इस बंधन से छुटकारा पाना चाहते थे और एक दिन अपने तपोबल से अंतर्ध्यान हो गए और फिर अपने गुरु गोरखनाथ जी के पास आ गए ।

गुरु के आदेश पर बाबा पूरणमल का अपने राज्य वापस आना

गुरु गोरखनाथ ने अपने शिष्य पूरन से कहा, अब तुम अपने माता-पिता और सौतेली माँ (मोसी) के पास वापस जाओ और उन्हें क्षमा कर दो क्योंकि संत को किसी के प्रति कोई द्वेष नहीं रखना चाहिए! गुरु की आज्ञा पाकर पूरन सियालकोट पहुँच गया।

पूरन जिस बगीचे में रुका था वह बगीचा हरा-भरा हो गया, यह बात राज्य में आग की तरह फैल गई कि जो बगीचा पिछले बारह वर्षों से सूख गया था वह एक तपस्वी के आने से हरा-भरा हो गया है!

जब यह जानकारी जब राजा को मिली तो राजा ने उस तपस्वी से मिलने का अनुरोध किया और अपने मंत्री और दरबारी को उस महान तपस्वी के पास भेजकर महल में चलने का अनुरोध किया। बाबा पूरनमल उसके साथ महल चले गए, योगी को देखकर राजा-रानी की आँखों में आँसू आ गये।

तब Puranmal ने कहा कि क्या बात हे  राजन! क्यों परेशान हो, तब  राजा ने अपनी सारी व्यथा बताई कि कैसे उसने अपनी युवा रानी नुनादे की बातों में आकर अपने ही पुत्र को मृत्युदंड दे दिया था, राजा की बात सुनकर Puranmal ने उनके पैर छूकर कहा कि पिताजी मैं ही आपका पुत्र पूरन हूँ ।

यह सुनकर राजा, रानी और प्रजा बहुत खुस हुए और उन्हें अपनी छोटी रानी पर बहुत क्रोध आ रहा था, और उन्होंने तुरंत रानी नुनादे को मृत्यु दंड दे दिया, यह सुनकर रानी नुनादे ने अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी,और रानी नुनादे को Puranmal ने उनसे क्षमा करवा दिया और कहा कि यदि उन्होंने मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया होता, तो उन्हें गुरु गोरखनाथ की शरण में जाने का अवसर नहीं मिलता। इसलिए उन्हें क्षमा कर देना चाहिए, तब रानी नुनादे बहुत लज्जित हुई और पूरन के चरणों में गिर गयी और याचना करने लगी, पूरन ने रानी को आशीर्वाद दिया कि तुम्हें मेरे जैसा पुत्र होगा जिसका नाम ‘रिसालू’ होगा।

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पुत्र प्राप्ति का वरदान देने के बाद पूरनमल अपनी मां इच्छारादे के पास गए जो उनकी याद में रोते-रोते अपनी आंखों की रोशनी खो चुकी थी, बाबा के तेज से माता की आँखों की रोशनी भी वापस आ गयी, हर तरफ महल में खुशियों की बारिश हो रही थी, जैसे ही माँ-बेटे का मिलन हुआ तो माँ इच्छारादे के स्तनों से दूध निकलने लगा और बोली बेटा अब मुझे मत छोड़ना, तब योगी Puranmal बोले अरे माँ तूने तो मुझे जन्म दिया है लेकिन मेरे गुरु गोरखनाथ ने मुझे दूसरा जन्म दिया है, इसलिए इस पर केवल गुरु गोरखनाथ का ही अधिकार है।

अंत में पूरनमल ने वहां से विदा ली और माता इच्छारादे से पुनः मिलने तथा मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार करने का वचन दिया और अपने गुरु गोरखनाथ के पास आ गये।

भक्त पूरणमल को बाबा सिद्ध श्री चौरंगीनाथ जी के नाम से जानते है लोग

ऐसा कहा जाता है, कि इस संसार में आज तक सिर्फ एक की पूर्ण भक्त हुए है,और वे बाबा Puranmal है, आगे चलकर बाबा Puranmal ही नाथ सम्प्रदाय की दद्दी संभालने वाले बाबा बाबा चौरंगीनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध हुए, बाबा Puranmal ने ही नाथ सम्प्रदाय की हरियाणा की सबसे बड़ी गद्दी स्थापित की थी, जो आज अस्थल बोहर बाबा मस्तनाथ जी का डेरा के नाम से प्रसिद्ध है और यहाँ बाबा चोरंगीनाथ जी की अखंड ज्योति आज भी जल रही है।

बाबा सिद्ध श्री चौरंगीनाथ जी  का चमत्कार और उनके ज्योति मंदिर के निर्माण की कहानी

कहा जाता है कि सिद्ध श्री चौरंगीनाथ जी जहां  तपस्या कर रहे थे, उसी समय एक बंजारा अपने वाहन पर चीनी की बोरियां लेकर जा रहा था। शाम का समय हो गया था और बंजारे ने वही रुकने का फैसला किया। चुकी बाबा का आश्रम पास ही था तो आग जलाने के किये अंगरी लेने एक मजदूर गया।  जब वह बाबा के यहाँ पंहुचा तो सिद्ध श्री चौरंगीनाथ जी ने उनसे पूछा कि वो क्या सामान लेकर जा रहे है।

ऐसे मजदूर ने सोचा की अगर मैंने सच बता दिया तो मुझे बाबा को बोरियां खोलकर चीनी देनी होगी और बोरियां फिर से बांधनी होंगी, इस सब में बहुत झंझट होगी, इस सब झंझट से बचने के लिए उसने झूठ बोल दिया कि इन बोरियों में नमक है।

सिद्ध श्री चौरंगी नाथ जी बहुत बड़े योगी थे, वे समझ गये कि यह झूठ बोल रहा है,असत्य भाषण से वे चिढ़ गये और योगबल से बंजारों की बोरियों में भरी हुई चीनी को नमक बना दिया। अगले दिन जब बंजारा अपना सामान लेकर नजदीकी कस्बे के बाजार में गया और वहां उसने अपना सामान संभाला तो उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि उसकी सारी बोरियां चीनी की जगह नमक से भरी हुई थीं।

बंजारे ने अपने सेवकों से पूछा कि यह कैसे संभव हुआ। एक सेवक ने बताया कि कल वह एक योगी के पास आग लेने गया था, तब योगी ने मुझसे पूछा कि तुम्हारे पास क्या सामान है, तब मैंने उसे बताया कि हमारे पास नमक है।उनके क्रोध के कारण हमारी बोरियों की चीनी नमक में बदल गयी। बंजारा सिद्ध श्री चौरंगी नाथ जी के पास पहुंचा, वहां वह उनके चरणों में गिर गया और उनके सामने सेवक द्वारा कहे गए असत्य भाषण के लिए उनसे क्षमा मांगने लगा।अनुरोध से संतुष्ट होकर सिद्ध श्री चौरंगी नाथ जी ने कहा, जाओ तुम्हें उन बोरियों में केवल चीनी ही मिलेगी और वह बहुत लाभ में बिकेगी।

तब बंजारे ने वह चीनी बेच दी और उससे उसे बहुत लाभ हुआ। बंजारा बहुत खुश हुआ और अपना सामान बेचकर वह फिर से सिद्ध श्री चौरंगी नाथ जी के पास आया और उनसे अनुमति लेकर वहां एक मंदिर बनवाया, उस मंदिर की दीवार 7:30 फीट चौड़ी और उतनी ही मोटी है।

यह प्राचीन मंदिर आज भी विद्यमान है और उसी मंदिर में महासिद्ध श्री चौरंगीनाथ जी की स्मृति में स्थापित अखंड ज्योति आज भी निरंतर जल रही है।

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