Guru Gorakhnath: बाबा गोरखनाथ के बारे में जाने अध्भुत बाते

baba gorakhnath
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Guru Gorakhnath मंदिर उत्तर प्रदेश के एक जिले गोरखपुर में नेपाल रोड पर करीब 4 किलोमीटर है। गोरखनाथ मंदिर बड़ा ही विशाल है जो की करीब 52 एकड़ में फैला हुआ है। गोरखनाथ मंदिर के महंत श्री योगी आदित्यनाथ जी है जो की उत्तरप्रदेश के मुक्यमंत्री के साथ-साथ नाथ पंथ के मुखिया भी है।

गुरु गोरखनाथ के जन्म की कहानी (Baba Gorakhnath ki Kahani)

बाबा गुरु गोरख नाथ का जन्म 845 ई. में हुआ था। गुरु गोरखनाथ के जन्म की भी विशेष कहानी है, एक बार इनके गुरु बाबा मत्स्येन्द्रनाथ एक गांव मैं भिक्षा मांगने पहुंचे, जब वे एक घर के सामने से निकल रहे थे तब एक महिला बड़े ही उदास मन से अपने घर की चौखट पर खड़ी थी।

बाबा ने महिला से उदासी का कारण पूछा, महिला ने बताया की उसके कोई औलाद नहीं है। बाबा तो बहुत बड़े सिद्ध महात्मा थे, उन्होंने अपनी झोली से एक चुटकी भभूत ली,और उस महिला को खाने को दे दी और कहा जा खुश रह तुझे एक बहुत ही सुन्दर  महा तेजस्वी बालक होगा और उसकी ख्याति चारों ओर फैलेगी।

उस महिला को आशीर्वाद देकर बाबा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ आगे बढ़ गए और फिर बारह वर्ष के बाद उस गांव मैं वापस आये। वह गांव वैसा का वैसा  ही था। बाबा भिक्षा मांगते हुए उसी महिला के घर पहुंच गए जिसे बाबा ने बारह साल पहले भभूत दी थी। जब उन्होंने आवाज लगाई तो वही महिला भिक्षा देने के लिए चौखट पर आयी गुरु जी उस महिला को पहचान गए।

गुरु जी ने उस महिला से पूछा, अब तो तेरा बेटा बारह साल का हो गया होगा। तब महिला ने रोते हुए गुरु जी के चरण पकड़ लिए और रोते हुए बताया, कि कैसे उसने मोहल्ले की औरते के कहने पर उस भभूत  को गोबर में डाल दिया था।

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चूकि बाबा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ सिद्ध महात्मा थे। उन्होंने अपने ध्यानबल से देखा और वे तुरंत ही गोबर के उस ढेर के पास गए जहां बारह साल पहले महिला ने भभूत फेंक दी थी।

बाबा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने बालक को पुकारा और उनके बुलावे पर एक बारह वर्ष का बहुत ही सुन्दर नाक नक्श, उच्च ललाट एवं आकर्षण की प्रतिमूर्ति स्वस्थ बच्चा गुरु के सामने आ खड़ा हुआ। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ उस बच्चे को लेकर वहाँ से चले गए। यही बच्चा आगे चलकर Guru Gorakhnath के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

गोरखनाथ मंदिर (Guru Gorakhnath mandir)

इस मंदिर में गुरु गोरखनाथ द्वारा जलाई गयी अखंड ज्योति है जो की त्रेता युग से आज तक जल रही है। इस मंदिर में मेला मकर संक्रान्ति के अवसर पर लगता है । इस मेले को ‘खिचड़ी मेला’ के नाम से जाना जाता है जो की करीब एक महीने तक चलता है।

गुरु गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (Guru Gorakhnath’s Guru Machindranath)

कौलज्ञान निर्णय (एक ग्रन्थ जो बाबा मछन्दरनाथ ने लिखी) के अनुसार बाबा कौलमार्ग के प्रथम प्रवर्तक थे। बाबा मछन्दरनाथ को शिक्षा  भगवान दत्तात्रेय ने दी थी। बाबा मछन्दरनाथ का जन्म आज से २०० ईसा पूर्व हुआ था और इनका कालखंड 809 से 849 ई. के आस-पास माना जाता है।

बाबा मछन्दरनाथ ने समाधी गढ़कालिका के पास ली थी जोकि उज्जैन मैं है। बाबा मछन्दरनाथ ने ही हठ योग की शिक्षा बाबा गुरु गोरखनाथ को दी थी और बाबा गोरखनाथ इसी विद्या की वजह से प्रसिद्ध हुए।

गुरु गोरखनाथ और ‘गोरखा’ शब्द (Guru Gorakhnath & Gorakha Word)

‘गोरखा’ शब्द भी बाबा गोरखनाथ से सम्बंधित है। नेपाल के गोरखा लोगों का नाम ‘गोरखा’ बाबा गुरु गोरखनाथ के नाम से ही है। नेपाल में एक जिला भी गोरखा है, उस जिले का नाम गोरखा भी उन्हीं के नाम पर पड़ा। ऐसा माना जाता है कि गुरु गोरखनाथ का जन्म नेपाल  में ही हुआ था।

गोरखा नाम के जिले में एक गुफा है, जहां बाबा  गुरु गोरखनाथ की एक  मूर्ति तथा उनके पैरो के निशान मौजूद है। हर साल यहाँ  वैशाख के महीने की पूर्णिमा को ‘रोट महोत्सव’ नाम से त्योहार मनाया जाता है और यहाँ मेला भी लगता है।

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राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले के ऊंचे टीले गोगा मेड़ी में भी Guru Gorakhnath जी का स्थान है। बाबा का एक मंदिर वेरावल में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के भी पास है। इनके साढ़े बारह पंथ बताये गए हैं। 

गुरु गोरखनाथ द्वारा लिखित पुस्तके (Books written by Guru Gorakhnath)

हमारे देश के बहुत बड़े दार्श्निक डॉ. बर्थवाल की खोज में उन्हें करीब 40 पुस्तकें प्राप्त हुईं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे पुस्तके बाबा गुरु गोरखनाथ ने लिखी थीं। डॉ. बर्थवाल ने काफी जाँच-पड़ताल के बाद प्रथम 14 ग्रंथों को निःसंदेह प्राचीन माना। क्योंकि इनका उल्लेख लगभग सभी प्रतियों में किया गया था।

तेरहवीं पुस्तक ‘ज्ञान चौंतीस’ समय पर न मिलने के कारण उसे संग्रह में शामिल नहीं किया गया , परंतु शेष तेरह को उन्होंने गोरखनाथ की रचनाएँ मानकर उस संग्रह में प्रकाशित किया है।

Sl. No पुस्तक का नाम Sl. no पुस्तक का नाम Sl.no पुस्तक का नाम
1 सबदी 15 गोरखगणेश गोष्ठी 29 गोरख वचन
2 पद 16 गोरखदत्त गोष्ठी (ग्यान दीपबोध) 30 इंद्री देवता
d3 शिष्यादर्शन 17 महादेव गोरखगुष्टि 31 मूलगर्भावली
4 प्राण –सांकली 18 शिष्ट पुराण 32 खाणीवाणी
5 नरवै बोध 19 दया बोध 33 गोरखसत
6 आत्मबोध 20 जाति भौंरावली (छंद गोरख) 34 अष्टमुद्रा
7 अभय मात्रा जोग 21 नवग्रह 35 चौबीस सिद्ध
8 पंद्रह तिथि 22 नवरात्र 36 षडक्षरी
9 सप्तवार 23 अष्टपारछ्या 37 पंच अग्नि
10 मंछिद्र गोरख बोध 24 रह रास 38 अष्ट चक्र
11 रोमावली 25 ग्यान –माला 39 अवलि सिलूक
12 ग्यान तिलक 26 आत्मबोध (2) 40 काफिर बोध
13 ग्यान चौंतीसा 27 व्रत
14 पंचमात्रा 28 निरंजन पुराण

नौ नाथ और चौरासी सिद्ध

9वी सदी में 84 सिद्धों के साथ बौद्ध धर्म के वज्रयान की परम्परा का प्रचलन हुआ। ये सभी भी नाथ ही थे। सिद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के अनुयायी सिद्ध कहलाते थे। उनमें से प्रमुख जो हुए उनकी संख्या चौरासी मानी गई है।

नौ नाथ गुरु (List of Nine Nath Guru’s)

।।मच्छिंद्र गोरक्ष जालीन्दराच्छ।। कनीफ श्री चर्पट नागनाथ:।।

श्री भर्तरी रेवण गैनिनामान।। नमामि सर्वात नवनाथ सिद्धान।।

1 मच्छेंद्रनाथ
2 गोरखनाथ
3 जालंदरनाथ
4 नागेशनाथ
5 भर्तरीनाथ
6 चर्पटीनाथ
7 कानीफनाथ
8 गहनीनाथ
9 रेवननाथ

महायोगी गोरखनाथ पहले नाथ योगी जिन्होंने हठ योग दिया

गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज पहली शताब्दी के  पहले नाथ योगी थे। इसका प्रमाण राजा विक्रमादित्य द्वारा बनाया गया पंचांग है जिन्होंने पहली शताब्दी से विक्रम संवत शुरू किया था। जबकि गुरु गोरक्षनाथ जी राजा भर्तृहरि और उनके छोटे भाई राजा विक्रमादित्य दोनों के गुरु थे गुरु गोरखनाथ जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेकों पुस्तकों की रचना की।

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गोरखनाथ मंदिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में स्थित है। इस जिले का नाम गोरखपुर बाबा गुरु गोरखनाथ के नाम पर  रखा गया है। गुरु गोरखनाथ के अनेको शिष्य हुआ परन्तु एक शिष्य बहुत प्रशिद्ध हुआ उसका नाम भैरोनाथ था,  जिसके लिए माता वैष्णोदेवी को खुद आना पड़ा। पुराणों के अनुसार Guru Gorakhnath भगवान शिव के अवतार थे।

नाथ संप्रदाय और 84 सिद्ध परंपरा की शुरुआत

नाथ शब्द का अर्थ होता है स्वामी। नाथ योगियों की यह परंपरा भारत में बहुत ही प्राचीन रही है। हिन्दू धर्म में भगवान शंकर को आदिनाथ और भगवान दत्तात्रेय को आदिगुरु माना गया है। इन्हीं से आगे चलकर नौ नाथ और 84 नाथ सिद्धों की नाथ संप्रदाय शुरू हुई।

आप लोगो ने केदारनाथ, अमरनाथ,बद्रीनाथ आदि कई तीर्थस्थलों के नाम सुने होंगे। भोले बाबा को भी भोलेनाथ, और भेरो बाबा को भैरवनाथ कहते है। तिब्बत के सिद्ध भी इसी नाथ संप्रदाय से ही थे।

बाबा गुरु गोरखनाथ ने ही नाथ संप्रदाय शुरू की थी और उनसे ही  84 नाथों का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि इन सभी नाथ साधुओं का स्थान हिमालय की गुफाओं में है। नाथ बाबा, नागा बाबा और सभी कमंडल, चिमटा धारण करने वाले जटाधारी बाबा शैव और शाक्त संप्रदाय के हैं, इन वैष्णव, शैव और शाक्त संप्रदाय का समन्वय गुरु दत्तात्रेय के समय में हुआ था।

नाथ संप्रदाय की एक शाखा जैन धर्म में भी है और इसकी एक शाखा बौद्ध धर्म में भी मिल जाएगी। गोरखनाथ के हठयोग की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले सिद्ध योगियों में प्रमुख हैं:- गोपीनाथ, चौरंगीनाथ, भर्तृहरि, चुणकरनाथ, जालन्ध्रीपाव ( जालंधर या जालिंदरनाथ) आदि।

इन्होंने ही गोरख वाणी का प्रचार-प्रसार 13वीं सदी में किया था। यह एकेश्वरवाद पर जोर देते थे और ब्रह्मवादी थे तथा ईश्वर के साकार रूप में सिर्फ  शिव भगवान के अलावा  कुछ भी सच नहीं मानते थे।

गुरु गोरखनाथ का साहित्य (Literature of Guru Gorakhnath)

बाबा गुरु गोरखनाथ ने ही नाथ साहित्य की स्थापना कि थी। गोरखपंथी साहित्य के अनुसार आदिनाथ स्वयं भगवान शिव ही है। भगवान शिव की परंपरा को सही ढंग से आगे बढ़ाने वाले गुरु मत्स्येंद्रनाथ थे। नाथ संप्रदाय में ऐसी मान्यता है। Guru Gorakhnath ने अपने लेखन और चिंतन में क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान को अधिक महत्व दिया है। उनके माध्यम से उन्होंने हठ योग का उपदेश दिया।

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