आज हम बात कर रहे है राजस्थान के Karni Mata Temple Bikaner के बारे में जो की चूहों की उपस्तिथि के लिए प्रशिद्ध हैं। इस मंदिर में करीब 40,000 से ज्यादा चूहे है। आपको बहुत हैरानी होगी की यहाँ इतने सारे चूहों है परन्तु कभी किसी को कोई परेशानी नहीं होती। इस मंदिर मैं चूहों का झूठा प्रसाद ही भक्तो को मिलता है। इस मंदिर की विशेस्ता ये भी है की आज तक चूहों की वजह से कोई भी बीमारी नहीं फैली। लोगो का कहना है की आज तक इस मंदिर मैं किसी भी बिल्ली ने प्रवेश नहीं किया।
करणी माता मंदिर बीकानेर (Karni Mata Temple Bikaner)
हम बात कर रहे हैं “चूहों वाले मंदिर” के नाम से प्रशिद्ध करणी माता मंदिर की, यह मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। इसमें देवी करणी माता की मूर्ति स्थापित है। यह बीकानेर से 30 किमी दूर स्थित है।
करणी माता का इतिहास (History of Karni Mata)
करणी माता का जन्म विक्रम संवत् 1444 में जोधपुर जिले के सुआप गाँव में केनिया गोत्र के मेहाजी चारण के घर में हुआ था।करणी माता के पिता मेहाजी का विवाह बालोतरा के निकट असाढ़ा गांव के चकलू आढ़ा की पुत्री देवल के साथ हुआ वि.सं. के 1422-23 के आसपास हुआ था।
मेहाजी और देवल माता की पांच बेटियां हुई थीं लेकिन उनका एक भी पुत्र नहीं था, जिसके कारण मेहाजी दुखी रहते थे। एक बार मेहाजी पुत्र प्राप्ति की कामना से माता हिंगलाज के मंदिर गए, जो अब बलूचिस्तान में है।
ऐसा कहा जाता है कि माता हिंगलाज मेहाजी की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुईं, और उन्होंने मेहाजी को आशीर्वाद दिया, मेहाजी घर लौट आए, लेकिन लगभग 20 महीने तक इंतजार करने के बाद भी देवल को कोई औलाद नहीं हुई जबकि वे गर्भवती थी। इस पर देवल और मेहाजी धैर्य खोने लगे।
करणी माता का जन्म (Birth of Karni Mata)
तब एक रात माँ दुर्गा ने माता देवल को स्वप्न में दर्शन दिये और कहा, धैर्य रखो देवल, मैं अपनी इच्छा से तुम्हारे गर्भ से जन्म लूंगी, इस प्रकार वि.सं. 1444 में आश्विन शुक्ल सप्तमी के दिन 21 महीने की गर्भावस्था के बाद सुवाप गांव में करणी मां का जन्म हुआ।
करणी माता का बचपन का नाम रिदु बाई था, रिदु बाई ने बचपन में कई चमत्कार दिखाए, जिसके कारण उनका नाम करणी माता रखा गया।
करणी माता का विवाह (Karni Mata’s Marriage)
जब करणी माता बड़ी हुई तब उनका विवाह राजस्थान के एक गांव सथिका में दीपो जी चारण से हुआ, परन्तु शादी के तुरंत बाद करणी माता ने अपने पति से साफ कर दिया की उनको शादी में कोई दिलचस्पी नहीं है और उनको ब्रह्मचर्य का पालन करना है क्युकी उनका जन्म तो लोक कल्याण के लिए हुआ है, जिसके बाद उनके पति का दूसरा विवाह करणी माता की बहन गुलाबो के साथ किया गया जिससे उन्हें ४ पुत्र हुए। करणी माता उन चारो पुत्रो को अपने ही पुत्र मानती थी।
करणी माता का चूहों से सम्बन्ध (Karni Mata’s Relationship with Rats)
एक कथा के अनुसार एक बार इनके चारो पुत्रो में से एक पुत्र की कुएँ में गिरने से मृत्यु हो गयी तब उन्होंने यमराज से अपने बेटे को जिन्दा करने की याचना की इस पर यमराज ने उस पुत्र के प्राण तो लोटा दिए परन्तु उसको चूहे का रूप मिला, तब से आज तक यही मान्यता की इनके वंसज जो भी मृत्यु को प्राप्त होते है उनका पुनर्जन्म इसी मंदिर में चूहे के रूप में होता है, तो लोगो की बात माने तो जो भी चूहे आपको यहाँ मिलेंगे वे सभी करणी माता के वंसज है।
करणी माता मंदिर का निर्माण (Construction of Karni Mata Temple)
करणी माता मंदिर 1620 और 1628 के आस पास महाराणा करण सिंह ने बनवाया था। इस मंदिर में चांदी के गेट महाराजा गंगा सिंह जी ने लगवाए। यह मंदिर मुगलशैली में संगमरमर पत्थर से बना हुआ है।
सन 1997 तक यह मन्दिर ज्यादा लोकप्रिय नहीं था,परन्तु 1997 में मनसापूर्ण करणी माता विकास समिति द्वारा शुरू की गई और इनकी पुनर्विकास परियोजना के बाद हजारों की संख्या में भक्तों ने मंदिर आना शुरू कर दिया।
करणी माता मंदिर का मेला (Karni Mata Temple Fair)
Karni Mata Temple Bikaner में मेला साल में दो बार नवरात्रो में लगता है । क्योकि माता को हिंगलाज माता का रूप मन जाता है । इनको राजस्थान का राठौर राजपूतो की कुल देवी के रूप में भी पूजा जाता है।
मंदिर के आस-पास के पर्यटन स्थल (Tourist Places Around the Temple)
- जूनागढ़ का किला
- गजनेर पैलेस
- लालगढ़ पैलेस
- देवी कुंड सागर
- रामपुरिया हवेली
करणी माता मंदिर की दुरी (Distance of Karni Mata Temple)
करणी माता का मंदिर जोधपुर हवाई अड्डे से करीब 220 किलोमीटर है।
बीकानेर रेलवे स्टेसन से करीब 30 किलोमीटर है।
बाकि यहाँ टेक्सी और बस की भी अच्छी सर्विस है।