Goga ji mandir: जहाँ साँप का जहर भी उतर जाता हैं

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दोस्तों नमस्कार ! आज हम लोग बात कर रहे है एक ऐसे मंदिर की जहा पहुंचने पर मन्नते पूरी होती है और अगर किसी को किसी सांप ने काटा है तो मंदिर पहुंचने पर उसका जहर उतर जाता है। जी हाँ हम बात कर कहे है Goga ji mandir के अपने जाहरपीर गोगाजी जी महाराज की जिनको लोग सिद्ध बाबा भी कहते है और ये बाबा गुरु गोरखनाथ के परम शिस्य थे।

गोगा जी मंदिर (Goga ji mandir)

गोगाजी चौहान (Gogaji Chauhan), जिन्हे राजस्थान के देवता के नाम से जाना जाता है। लोग इन्हे गोगा पीर, जाहरपीर या जाहरवीर के नाम से भी जानते है। गोगा जी महाराज को हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्म बराबर मान्यता करते है।

गोगाजी चौहान का जन्म विक्रम संवत् 1003 में राजस्थान के चुरू जिले के एक गाँव ददरेवा (दत्तखेड़ा) में एक राजपूत परिवार और चौहान वंश के शासक के घर हुआ था। गोगाजी महाराज की माता का नाम बाछल कंवर और पिताजी का नाम जैबरजी (ठाकुर जेवरसिंह) था। गोगाजी महाराज गुरु गोरखनाथ के परम शिष्य और परम भक्त थे।

गोगा मेडी मंदिर राजस्थान (Goga medi mandir Rajasthan)

जाहरवीर गोगा जी चौहान का मंदिर जिसे Goga ji mandir राजस्थान में एक गांव ‘गोगा मेडी’ में है। यह स्थान हनुमानगढ़ जिले में पड़ता है।

गोगामेड़ी का मेला

गोगामेड़ी में गोगा जी महाराज का मेला सरद ऋतू में भादों मास में कृष्णपक्ष की नवमी को भरता है। यहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु आते है और इन्हें हिन्दू, सिख और मुसलमान तीनो धरम के लोग पूजते हैं। मुस्लिम समाज के लोग उन्हें जाहर पीर के नाम से पूजते हैं तथा उनके स्थान पर माथा टेकते है और मन्नत मांगते है।

goga medi mandir

गोगाजी चौहान का जन्म और इतिहास

गोगाजी का जन्म विक्रम संवत् 1003 में राजस्थान में हुआ था इनके गांव का नाम ददरेवा(दत्तखेड़ा) है। यह चुरू जिले पड़ता है। इनका जन्म एक राजपूत परिवार में चौहान वंश के शासक जैबरजी (ठाकुर जेवरसिंह) के घर हुआ था। गोगा जी माता का नाम बाछल कंवर था। माता बाछल कंवर निसंतान थी।

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उस समय गुरु गोरखनाथ गोगामेड़ी में तप कर रहे थे तब एक दिन माता बाछल देवी उनके पास गयी और अपनी व्यथा बताई। गुरु गोरखनाथ ने उन्हें एक फल गूगल दिया जिसे खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और भादो सुदी नवमी को एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम गूगल और गोरखनाथ से प्रभावित गोगा चौहान रखा गया।

चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर को ही प्रसिद्धि मिली है, गोगाजी महाराज का राज्य सतलुज नदी सें हांसी (हरियाणा) तक था। गोगाजी महाराज की जन्मभूमि पर इतने वर्षो के बाद आज भी उनके घोड़े का अस्तबल विद्धमान है, और सैकड़ों वर्षो के बाद भी उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है।

सांपो के विष का नहीं होता है असर

लोकमान्यता और कथाओं के अनुसार गोगाजी महाराज को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहिर वीर,राजा मण्डलिक व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। और उन्हें राजस्थान के छह सिद्धों में प्रथम माना गया है।

कुछ मान्यताओं के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को सांप काट लेता है और उस व्यक्ति को गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है।

भक्त गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सांप की तस्वीर बनाते है। सभी भक्त गोगाजी का जागरण और कीर्तन करते हैं और उनके स्थान ‘गोगा मेडी’ मंदिर में माथा टेकते है और मन्नत माँगते हैं।

कैसे पड़ा गोगाजी चौहान का नाम जाहरपीर

गोगाजी चौहान और तुर्क आक्रांताओ के बीच एक घमासान युद्ध हुआ था जिसका कारण उनके  मौसेरे भाई अर्जन चौहान व सुरजन चौहान थे । दोनों बीच मैं जमीन को लेकर झगड़ा चल रहा था जिसके लिए अर्जन चौहान ने तुर्क आक्रांताओ से हाथ मिला लिया और सुरजन चौहान को  युद्ध की चुनौती दी, तुर्क मुसलमानो ने वह की गायों को घेर लिया जिससे गोगा जी को क्रोध आ गया और इसके प्रतिरोध में उन्होंने सुरजन चौहान का साथ दिया।

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गोगा जी युद्ध कौसल में बहुत ही पारंगत थे उनके रण कौसल को देखकर महमूद गजनवी ने कहा था कि यह तो ‘जाहीरा पीर है अर्थात् साक्षात् देवता।  इस युद्ध की वजह से ही गोगा जी महाराज का नाम ‘जाहरपीर’ प्रसिद्ध हुआ।

राजस्थान की लोक कथाओ के अनुसार इस युद्ध में गोगाजी चौहान अपने 47 पुत्र और 60 भतीजे के साथ वीर गति को प्राप्त हुए थे। उत्तर प्रदेश में भी इन्हें ‘जाहरपीर’ के नाम से जाना जाता है। मुसलमान इन्हें ‘गोगापीर’ कहते हैं। गोगाजी ने गौ-रक्षा एवं तुर्क आक्रांताओं (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।

शीश मेड़ी’ और ‘गोगामेड़ी’ का रहस्य

कथाओ के अनुसार तुर्क अक्रान्ताओ के साथ युद्ध में गोगा जी वीर गति को प्राप्त हुए थे और  युद्ध भूमि में लड़ते हुए गोगाजी चौहान का सिर जिस स्थान पर गिरा था उसे  ‘शीश मेड़ी’ तथा युद्ध करते हुए जहाँ शरीर गिरा था उसे ‘गोगामेड़ी’ कहा जाता है। गोगाजी के जन्म स्थल ददरेवा को ‘शीर्ष मेड़ी’ तथा समाधि स्थल ‘गोगा मेडी’ (भादरा-हनुमानगढ़) को ‘धुरमेड़ी’ भी कहते हैं।

क्या पांडवो के वंसज है – गोगाजी चौहान

गोगाजी के बारे में एक कथा है और  उस कथा को उनके जागरण में भक्त समैया द्वारा गया जाता है जिसके अनुसार ‘अर्जुन के पौत्र जिसका नाम ‘परीक्षित’ था। और जब कलयुग का आगमन हुआ तब कलयुग ने राजा परीक्षित से उसके ठहरने के लिए स्थान माँगा, जिस पर राजा परीक्षित ने उसे सोने में स्थान दिया जिसके प्रभाव से वह राजा परीक्षित के सिर पर सवार हो गया।

एक दिन राजा जंगल में शिकार करने के लिए गए जब जंगल में उन्हें प्यास लगी, तो वे पास ही में स्थित ऋषि शमीक के आश्रम में गए और पानी माँगा उस समय ऋषि शमीक उस समय ध्यान में बैठे हुए थे, कलयुग के प्रभाव में आकर राजा परीक्षित ने वहां पड़ा हुआ एक मृत सांप  ऋषि शमीक के गले में डाल दिया।

ऋषिपुत्र ‘श्रृंगी का श्राप

जब राजा परीक्षित ने ऋषि शमीक के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया तो उनके पुत्र  ऋषिपुत्र ‘श्रृंगी’ को बड़ा क्रोध आया और उसने बिना इसकी कोई भी पड़ताल किये राजा परीक्षित को श्राप दे दिया, कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है उसे आज से सातवें दिवस ‘तक्षक’ नाग डसकर मृत्युलोक पहुंचा देगा।

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उस श्राप के प्रभाव से राजा परीक्षित कड़ी सुरक्षा के पश्चात भी तक्षक नाग ने सातवें दिन डस लिया। और उनकी मृत्यु हो गयी।

जन्मजय का क्रोध और सर्पदमन यज्ञ का अनुष्ठान

राजा परीक्षित का पुत्र था जन्मजय , जब उसको पता चला की उनके पिता की मृत्यु का कारण तक्षक नाग है तो उसे नाग जाती पर बड़ा क्रोध आया और उसने सर्पदमन यज्ञ का अनुष्ठान किया। वह इस यज्ञ में समस्त नाग जाती को ही समाप्त कर देना चाहता था , इस यज्ञ में समस्त नाग जाती भस्म होने लगी, इंद्रा देवता भी इस यज्ञ को रोकने में समर्थ नहीं थे।

तत्पश्चात् माता मनसा देवी के पुत्र आस्तीक ने अपने प्रयत्नों से नागों के प्राणों की रक्षा की और उस जन्मजेय को समझा कर यज्ञ को रोक दिया।

कैसे गुरु गोरखनाथ नागलोग से लेकर आए जन्मेजय की आत्मा को पृथ्वी पर

किन्तु जब राजा जन्मेजय की मृत्यु हुई तब नागों ने जन्मेजय की आत्मा को पाताल लोक में बंदी बना लिया था। जिसकी लिए गुरु गोरखनाथ ने पाताल लोक गए और उन्हने राजा जनमेजय की आत्मा को गूगल में छुपा लिया जब वे वह से पृत्वी की तरफ आ रहे थे तो नागो को पता चल गया और वे गुरु गोरखनाथ का पीछा करने लगे, जब गुरु गोरखनाथ धरती पर आए तब भी तक्षक नाग ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनके हाथ से गूगल छीन कर निगल गया।

राजा जन्मजय का पुनर्जन्म – गोगाजी महाराज

सौभाग्य से वहां एक युवक साफ-सफाई कर रहा था और उसने देखा कि एक नाग ने साधु के हाथ से छीन कर कुछ वस्तु निगल ली है, तब उसने उस नाग पर झाड़ू के डंडे से प्रहार किया जिसके कारण तक्षक के मुँह से निकल कर गूगल बहार गिर गयी, और  गुरु गोरखनाथ जी ने गूगल उठाकर उस युवक को वरदान दिया कि इस गूगल से एक बालक उत्पन्न होगा और वह बड़ा ही सिद्ध पुरुष होगा जिसके भजनों का तुम लोग गायन करोगे ऐसा कहकर गुरु गोरखनाथ जी अंतर्ध्यान हो गए।

तक्षक नाग भी निराश होकर पाताल को लौट गया। इसी गूगल को गुरु गोरख नाथ ने माता बाछल कंवर को वरदान स्वरूप दिया था जिससे गोगा जी का जन्म हुआ और  इस प्रकार राजा जन्मेजय ही गोगाजी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

विशेष तरीका है Goga ji mandir में पूजा करने का 

कुछ परम्परा के अनुसार ददरेवा आने वाले भक्तजनो को पहले गोरख गंगा में स्नान करना होता है और फॉर उसी गोरख गंगा जल से खीर बनानी होती है और फिर गोरख टीला जाकर मंदिर में प्याज का प्रसाद चढ़ाना होता है। मंदिर में भी दाल और प्याज का प्रसाद बांटा जाता है इसके अलावा यहाँ खील और बतासे भी प्रसाद के रूप में बाटे जाते है ।

गोगाजी मंदिर गोगामेड़ी कैसे पहुंचे (Way to Goga ji mandir)

Goga ji mandir दिल्ली से लगभग 250 किलोमीटर है और अगर आप दिल्ली से गोगामेड़ी जा रहे है तो आपको नई दिल्ली से सीधे गोगामेड़ी स्टेशन ट्रैन मिल जाएगी। इसके अलावा आप टैक्सी और बस से भी जा सकते है।

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