जय श्री श्याम!, दोस्तों आज हम बात करेंगे हमारे लखदातार बाबा श्याम जी की। बाबा श्याम का मंदिर (Khatu Shyam Mandir) राजस्थान के सीकर जिले मैं रींगस से 21 किलोमीटर की दुरी पर एक प्रसिद्ध गांव है – खाटू। यह मंदिर विश्वविख्यात है। इस मंदिर का इतिहास 1100 साल पुराना है। इसका निर्माण 1027 ईस्वी में चौहान रूपसिंह जी और उनकी पत्नी श्रीमती निरामला कंवर जी ने करवाया था।और इसका पुनर्निर्वाण सन 1720 में श्रीमान अभयसिंह जी ने करवाया था। Khatu Shyam Ji का मंदिर संगमरमर पत्थर से बना हुआ है। परन्तु अभी कोरनाकाल के बाद और मंदिर में श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ के कारण मंदिर का फिर से सन 2022 में जीर्णोधार हुआ जो की मंदिर के ट्रस्ट ने करवाया है।
खाटू श्याम का इतिहास (History of Khatu Shyam Ji)
बाबा के सिर का खाटू मैं प्रकट होना
जब युद्ध समाप्त हुआ तब पांडवो को अभिमान हो गया और सब अपनी-अपनी बहुत बड़ाई कर रहे थे। इस पर श्री कृष्ण पांडवो को बर्बरीक के पास लेकर गए और कहा – बताओ बर्बरीक इस युद्ध में तुमने क्या देखा और किस योद्धा ने अपने पराक्रम से इस युद्ध को जिताया ?
बर्बरीक ने बताया कि उसने तो सिर्फ श्री कृष्णा को ही देखा और सब जगह उनका ही सुदर्सन चक्र युद्ध कर रहा था। तब बर्बरीक की बाते सुनकर पांडवों का अभिमान शांत हुआ। इसके बाद भगवान श्री कृष्णा ने बर्बरीक को कलयुग के आने की बात कही और कहा कि उन्हें खाटू में प्रकट होना है।
खाटू में उनका मंदिर होगा और उनको श्री कृष्णा के नाम श्याम, के नाम से जाना जायेगा और उनकी पूजा होगी। भगवान श्री कृष्णा की सभी शक्तिया उनको मिलेगी और वे उन शक्तियो के इस्तेमाल से अपने भक्तो के दुखो को हर लेंगे।
राधा नामक गाय
उसके बाद उनके सिर को रूपवती नदी में प्रवाहित कर दिया। बाबा श्याम का सिर नदी में बहता हुआ खाटू गांव में पहुंचा, जहां रूपवती नदी सूख गई और बर्बरीक का सिर कुछ समय तक वहीं दबा रहा।
कुछ वर्षों के बाद एक राधा नाम की गाय जिसको उसके मालिक ने दूध ने देने पर छोड़ दिया था, घूमते-घूमते उस स्थान पर पहुँची जहाँ बर्बरीक का सिर दबा हुआ था, वहां पहुंचते ही गाय के थनों से दूध बह निकला जबकि वह गाय दूध नहीं देती थी।
वह गाय रोज सुबह और शाम को उस स्थान पर जाने लगी और बाबा श्याम को दूध पिलाने लगी। गाय के मालिक को यह बात कुछ अटपटी सी लगी और यह बात आगे जाकर राजा के कानो मैं पड़ी।
बाबा के मंदिर की स्थापना
राजा साहब इस बात को स्वयं जाकर देखना चाह ही रहे थे कि उन्हें भगवान ने सपने मैं दर्शन दिए और कहा वह उस स्थान पर जाये जहाँ गाय जाती है और खुदाई करे। वहां उसको घटोत्कच के सबसे बड़े पुत्र वीर बर्बरीक का सिर मिलेगा, जिसके लिए राजा को मंदिर बनवाना है और विधिवत स्थापना भी करनी है जिससे उनकी पूजा शुरू हो सके।
श्याम कुंड
तो दोस्तों यह कहानी है बाबा श्याम के मंदिर की। दोस्तों जिस जगह से सिर प्रकट हुआ था उस जगह को शयाम कुंड कहते है। यह श्याम कुंड बाबा श्याम के मंदिर से 100 मीटर की दुरी पर ही है, भक्त यहाँ कुंड के दर्शन करते है और कुंड में स्नान करते है। कहते है श्याम कुंड में स्नान करने से सभी चर्म रोग दूर हो जाते है बाकि सब अपनी अपनी श्रद्धा है ।
बाबा का जन्मदिन
जिस दिन Khatu Shyam Ji का सिर मंदिर में स्थापित हुआ उस दिन देवउठनी एकादशी थी। इसलिए बाबा का जन्मदिन भी इसी दिन मनाया जाता है।
बर्बरीक का इतिहास
कौन है बाबा श्याम (बर्बरीक कौन था?)
Khatu Shyam Ji (बर्बरीक) का जन्म द्वापर युग मैं दैत्यराज मूर की पुत्री कामकटंककटा , जिन्हे लोग माता मोरवी के नाम से जानते है और घटोत्कच से हुआ था। घटोत्कच व माता मोरवी के तीन पुत्र थे। बर्बरीक सबसे बड़े थे ,इनका नाम बर्बरीक इनके घुंगराले बालों की वजह से पड़ा जोकि बब्बर शेर की तरह घुंगराले थे ।
ये बहुत वीर थे और इन्हे भगवान श्री कृष्णा ने वरदान स्वरुप अपना नाम श्याम दिया और आज लोग इन्हे खाटू के बाबा श्री श्याम, तीन बाणधारी बाबा श्याम, कलयुग के देवता बाबा श्याम, शीश के दानी बाबा श्याम, श्याम सरकार और खाटू नरेश और कुछ अन्य अनगिनत नामों से बुलाते हैं।
श्री मोरवीनंदन खाटूश्याम जी
ऋषि वेदव्यास जी ने भी स्कन्द पुराण मैं बाबा श्याम के जन्म के बारे मैं लिखा है बाबा श्याम का दादा जी का नाम महाबली भीम और दादी जी नाम हिडिम्बा था। इनके पिता का नाम वीर घटोत्कच था।
वीर घटोत्कच विवाह प्रागज्योतिषपुर जोकि अब ‘आसाम’ में है ,के राजा दैत्यराज मूर की पुत्री मोरवी से हुआ। मोरवी बहुत ही क्रूर थी वह शस्त्र और शास्त्र दोनों मैं बहुत विद्वान थी और अपने विवाह के लिए उनकी यही सर्त होती थी जो भी उन्हें शस्त्र और शास्त्र दोनों मैं हरा देगा वे उससे ही विवाह करेंगी।
तब श्री कृष्णा के परामर्श पर वीर घटोत्कच ने मोरवी की चुनौती स्वीकार की और उन्हें हरा दिया। इस प्रकार दोनों का विवाह हुआ और दोनों की पहली संतान के रूप मैं बाबा श्याम यानि वीर बर्बरीक का जन्म हुआ।
बाबा श्याम के भाई – (Khatu Shyam Ji’s Brother)
Khatu Shyam Ji के और दो भाई हुए जिनके नाम अंजनपर्व और मेघवर्ण थे। वीर बर्बरीक महादेव शिव के पराम् भक्त थे।
बाबा श्याम के गुरु (Khatu Shyam Ji’s Guru)
बर्बरीक के तीन गुरु थे:
- भगवान श्री कृष्णा जिन्होंने बर्बरीक को धनुर्विद्या और 16 कला सिखाई।
- माता मोरवी इन्होने बाबा श्याम को सभी मायावी कलाओ का स्वामी बनाया ।
- गुरु विजयसिद्धसेन, इन्होने इन्हे वे सभी विद्या प्रदान की जिससे ये विश्व विजेता बने, और इन्हे कोई भी युद्ध में परास्त नहीं कर सकता था ।
बर्बरीक अपने बचपन से ही बहुत बलशाली और वीर थे उनकी धनुर्विद्या और युद्ध कला की शिक्षा अपनी माता मोरवी तथा भगवान् श्रीकृष्ण से मिली।
जब बर्बरीक बड़े हुए तो पिता घटोत्कच शिक्षा के लिए इन्हें भगवान् श्री कृष्ण के पास द्वारका लेकर गए तो उन्हें देखते ही भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा— हे मोर्वेय! तुम मुझे घटोत्कच की ही तरह प्यारे हो। तब बर्बरीक ने श्री कृष्णा से पूछा – हे गुरूदेव! इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग क्या है? बर्बरीक के इस प्रश्न पर श्री कृष्ण ने कहा— हे पुत्र, इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग है कि परोपकार का भाव होना , निर्बल का साथ देना तथा सदैव धर्म का साथ देने से है। और उसके लिए तुम्हें बल, बुद्धि , विवेक और शक्तियों की आवश्कता होगी।
अत: तुम गुरु विजयसिद्धसेन के पास जाओ और नवदुर्गा की उपासना करके शक्तियाँ अर्जित करो। श्री कृष्ण के कहने पर बर्बरीक ने भगवान को प्रणाम किया और विदा ली। बर्बरीक हृदय के बहुत सरल थे, जिसके लिए भगवान श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक को नाम दिया “सुहृदय”।
तत्पश्चात बर्बरीक गुरु विजयसिद्धसेन के पास गए जोकि उस समय यज्ञ कर रहे थे, तब वीर बर्बरीक ने राक्षसों के जंगलरूपी समूह , पिंगल, रेपलेंद्र, दुहद्रुहा तथा नौ कोटि मांसभक्षी पलासी राक्षसों को अग्नि की भाँति भस्म कर दिया और ब्राह्मण का यज्ञ सम्पूर्ण कराया।
जब ब्राह्मण का यज्ञ सम्पूर्ण हुआ तो वे बहुत खुश हुए और उन्होंने अपने यज्ञ से सभी देवी और देवता को प्रकट किया और बर्बरीक को भस्मरूपी शक्तियाँ प्रदान कीं।
स्कन्द पुराण के अनुसार बर्बरीक की कहानी
राक्षस राज मूर कौन थे
राक्षस राज मूर बाबा श्याम की माता मोरवी के पिता थे। जब राक्षस राज मूर ने धरती पर कोहराम मचा रखा था, तब देवो की बैठक हुई सब लोग ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी उन्हें भगवान श्री हरी विष्णु के पास जाने की सलाह दी। उस समय यक्षराज सूर्यवर्चा भी वहां थे और वे बोले मुर को मारने के लिए वे अकेले खुद ही सक्षम हैं, और भगवान विष्णु के पास जाने की कोई जरुरत नहीं है।
यक्षराज सूर्यवर्चा को मिला श्राप
इस बात पर ब्रह्मा जी क्रोध में गए और उन्होंने यक्षराज सूर्यवर्चा को श्राप देते हुए कहा – सूर्यवर्चा! मैं तेरा पराक्रम के बारे में अच्छी तरह से जानता हूँ, और तुमने अहंकारवश अपनी तुलना भगवान श्री हरी विष्णु से करके इस देवसभा की बेज्जती की है और इसका दण्ड तुम्हें जरूर मिलेगा। जाओ तुम पृथ्वी पर राक्षस योनि में जन्म लोगे और तुम्हारा वध भगवान विष्णु के सुदर्सन चक्र से होगा।
यक्षराज सूर्यवर्चा का पुनर्जम बाबा श्याम के रूप में
तब यक्षराज सूर्यवर्चा को अपनी भूल समझ आ गयी और वे ब्रह्मा जी के चरणों मैं गिर गए , इस पर ब्रह्मा जी ने उसे छमा तो कर दिया परन्तु अपना श्राप वापस नहीं सके, और उन्होंने उस श्राप को बदल दिया , उन्होंने कहा हे! यक्षराज सूर्यवर्चा तुम पृथ्वी पर जन्म तो लोगे परन्तु जब द्वापर कल का अंत होने वाला होगा तो भगवान श्री कृष्णा तुमसे तुम्हारा शीश मांग लेंगे और तुम्हे अपना नाम देंगे इस तरह तुम कलयुग में देवताओ के समान पूजे जाओगे।
स्कन्द पुराण के श्लोक
स्कन्द पुराण के कुछ श्लोक जो बाबा शयाम के शीश दान पर भगवान श्री हरी विष्णु (भगवान श्री कृष्णा ) ने कहे:-
तत्सतथेती तं प्राह केशवो देवसंसदि ! शिरस्ते पूजयिषयन्ति देव्याः पूज्यो भविष्यसि !! (स्कन्द पुराण, कौ. ख. ६६.६५)
इत्युक्ते चण्डिका देवी तदा भक्त शिरस्तिव्दम ! अभ्युक्ष्य सुधया शीघ्र मजरं चामरं व्याधात !!
यथा राहू शिरस्त्द्वत तच्छिरः प्रणामम तान ! उवाच च दिदृक्षामि तदनुमन्यताम !! (स्कन्द पुराण, कौ. ख. ६६.७१,७२)
ततः कृष्णो वच: प्राह मेघगम्भीरवाक् प्रभु: ! यावन्मही स नक्षत्र याव्च्चंद्रदिवाकरौ !
तावत्वं सर्वलोकानां वत्स! पूज्यो भविष्यसि !! (स्कन्द पुराण, कौ. ख. ६६.७३,७४)
देवी लोकेषु सर्वेषु देवी वद विचरिष्यसि ! स्वभक्तानां च लोकेषु देवीनां दास्यसे स्थितिम !! (स्कन्द पुराण, कौ. ख. ६६.७५,७६)
बालानां ये भविष्यन्ति वातपित्त क्फोद्बवा: ! पिटकास्ता: सूखेनैव शमयिष्यसि पूजनात !! (स्कन्द पुराण, कौ. ख. ६६.७७)
इदं च श्रृंग मारुह्य पश्य युद्धं यथा भवेत ! इत्युक्ते वासुदेवन देव्योथाम्बरमा विशन !! (स्कन्द पुराण, कौ. ख. ६६.७८)
बर्बरीक शिरश्चैव गिरीश्रृंगमबाप तत् ! देहस्य भूमि संस्काराश्चाभवशिरसो नहि! ततो युद्धं म्हाद्भुत कुरु पाण्डव सेनयो: !! (स्कन्द पुराण, कौ. ख. ६६.७९,८०)
खाटू श्याम मंदिर (Khatu Shyam Ji Mandir Rajasthan)
शीश की पूजा
दोस्तों बाबा श्याम अपने शीश के दान के लिए प्रसिद्ध है, इनके शीश की ही पूजा खाटू धाम में होती है। भक्तजन बहुत दूर दूर से इनके दरसन के लिए आते है।
धड़ की पूजा
Khatu Shyam Ji के धड़ की पूजा हरियाणा के हिसार जिले के एक गांव स्याहड़वा में होती है जो पानीपथ के पास है। इस जगह को चुलकाना धाम से जाना जाता है। इसी जगह भगवन श्री कृष्णा ने बाबा से उनका सिर का दान लिया था।
खाटू श्याम मंदार के आस पास
मंदिर के बहार खुली जगह है और चारो तरह होटल और मार्किट है, जहां से आप बाबा का प्रसाद ले सकते है। कोरोनाकाल तक मंदिर में प्रसाद भी चढ़ाया जाता था। परन्तु आजकल मंदिर में बाबा श्याम के सामने प्रसाद अर्पित नहीं होता है।
इसी मंदिर के अंदर ही बाबा बजरंगबली का भी मंदिर है, जहां आप बाबा सिंह पोल के दर्शन करेंगे।
खाटू जी मंदिर के पास ही एक बगीचा है जिसे श्याम बगीचा कहा जाता है बाबा को फूल इसी बगीचे से चुने जाते है। बाबा के परम भक्त बाबा आलू सिंह जी की समाधी भी इसी बगीची में है।
इस मंदिर से 50 मीटर की दुरी पर एक कुंड है जिसे श्याम कुंड के नाम से जाना जाता है। मान्यता के अनुसार लोग इस कुंड में स्नान करते है। और बाबा श्याम के दर्शन के लिए जाते है। यह वही कुंड है, जहां से बाबा का सिर प्रकट हुआ था।
गोपीनाथ जी और गौरीशंकर मंदिर
Khatu Shyam Ji के मंदिर के दक्षिण पूर्व में गोपीनाथ जी का मंदिर है और गौरीशंकर मंदिर भी है। इस गौरीशंकर मंदिर को तोड़ने के लिए औरंगजेब ने पूरी ताकत लगा दी थी और शिवलिंग पर भालों से प्रहार हुआ था , तब उस शिवलिंग से रक्त की धारा बह निकली थी, और सब सैनिक मंदिर से डर के भाग गए। हम लोग उन भालो के निशानों को आज भी बाबा के शिवलिंग पर देख सकते है ।
मंदिर के पास बहुत सारी धर्मशालाएं भी है, जिनमे लोग रात को रुकते है तथा भजन भी गाते है। मंदिर की सभी देखरेख ट्रस्ट करता है।
Khatu Shyam Ji Mandir Timings
मंदिर सुबह 5:00 बजे खुलता है और रात को 10:00 बजे तक आप दर्शन कर सकते है। दोपहर में 2 घंटे मंदिर बाबा के आराम और मंदिर की साफ सफाई के लिए बंद होता है और बाबा के श्रृंगार के बाद लगभग 3:00 बजे खुलता है ।
बाबा का दिन हर महीने की ग्यारस को मनाया जाता है इस दिन लाखो श्रद्धालु मंदिर पहुंचते है। और जय श्री श्याम का उद्घोष करते है। बाबा का मेला फागुन मास में शुक्ल पक्ष में दुआदसी के पास 4 दिन के लिए लगता है।
बाबा श्याम को मिला धनुस और 3 बाण
उसके बाद बर्बरीक ने महीसागर क्षेत्र में 3 वर्ष तक नवदुर्गा की आराधना की और माँ नवदुर्गा ने उन्हें असीमित शक्तियां प्रदान की तथा एक दिव्य धनुष भी प्रदान किया, इसके बाद उन्होंने भगवान शिव शंकर की कठोर तपस्या की जिससे प्रस्सन होकर भगवान महादेव ने उन्हें 3 अमोघ बाण दिए और बताया की वह इन बाणो के प्रयोग से तीनो लोको पर विजय प्राप्त कर सकता है बड़े से बड़े युद्ध को पल बार मैं समाप्त कर सकता है । और यही से उन्हें “चांडिल” नाम मिला।
बाबा खाटू श्याम के मंत्र जो दिन प्रतिदिन बोले जाते है
- ॐ श्री श्याम देवाय नमः ।
- ॐ मोर्वये नमः ।
- ॐ मोर्वी नंदनाय नमः ।
- ॐ शीशदानेश्वराय नमः ।
- ॐ खाटूनाथाय नमः ।
- ॐ सुहृदयाय नमो नमः ।
- ॐ महाधनुर्धर वीर बर्बरीकाय नमः ।
- ॐ श्याम शरणम् ममः ।
- ॐ श्याम देवाय बर्बरीकाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेशनाशाय सुहृदयाय नमो नमः ।
- ॐ मोर्वी नन्दनाय विद्महे श्याम देवाय धीमहि तन्नो बर्बरीक प्रचोदयात ।
- बाबा श्याम को कहते है हारे का सहारा
दोस्तों बाबा श्याम को हम हारे का साहरा नाम से भी जानते है। क्या आपको पता है की उन्हें हारे का साहरा क्यों कहा जाता है? तो हम आपको बताते है ।
जब बाबा श्याम यानि वीर बर्बरीक श्री कृष्ण के कहने पर गुरु विजयसिद्धसेन के पास गए तो उस समय वे एक यज्ञ कर रहे थे, जिसको पूरा करने में उन्हें प्लासी राक्षस परेशान कर रहे थे। जब बर्बरीक वह पहुंचे तो उन्होंने गुरु के यज्ञ मैं मदद की और राक्षसों का वध किया ।
जब यज्ञ समाप्त हुआ तब बर्बरीक ने गुरु विजयसिद्धसेन को प्रणाम किया और बताया की उन्हें श्री कृष्ण ने भेजा है।
निर्बल का साथ देने का वचन
गुरु जी ने बर्बरीक से पूछा की उनको क्या चाहिए , तब बर्बरीक ने कहा – गुरुदेव मैं इस संसार पर विजय पाना चाहता हूँ। ऐसा कोई भी वीर इस धरा पर न हो जो उसे परास्त कर सके।
गुरु ने कहा ठीक है वे शिक्षा देंगे परन्तु बर्बरीक को एक वचन देना होगा की जब वह सर्व शक्तिशाली होगा तो उसे निर्बल का साथ देना होगा। उसे हर उस आदमी की सहयता करनी होगी जो निर्बल होगा। तब बर्बरीक के कुछ भी बिना सोचे अपने गुरु विजयसिद्धसेन को वचन दे दिया।
इसमें भी कुछ मत भेद है, कुछ लोगो का मन्ना है की उन्होंने अपनी दादी को यह वचन दिया थे की वे महाभारत के युद्ध मैं हारने वाले के पक्ष मैं युद्ध करेंगे। इसी वचन के कारण Khatu Shyam Ji हारे का सहारा कहलाये।