दोस्तों हमारे देश में बहुत से ऐसे ऋषि-महर्षि और साधु-संत हुए हैं जिन्हे आज भी माना और पूजा जाता हैं। यहाँ तक की कई राजा-महाराजा भी अपने राज को छोड़कर तपस्वी और संत बन गए हैं। आज हम ऐसे ही एक बाबा के बारे में जानेंगे जिनका नाम Raja Bharthari हैं। ये पहले उज्जैन के राजा थे बाद में इन्होने सब त्याग कर वैराग्य ले लिया।
भर्तृहरि का जीवन परिचय और उनके वैराग्य की कहानी
Bharthari Baba उज्जैन के राजा थे। जब उन्हें वैराग्य का ज्ञान हुआ, तब उन्होंने अपना सब राजपाट अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को सौंप दिया और गुरु गोरखनाथ की शरण की, और उनके चरण कमलो में बैठकर भक्ति की। उन्होंने अलवर जिले के सरिस्का के पास भर्तृहरि गाँव में एक गुफा में तप किया। उनके वैराग्य की कथा इस प्रकार है :-
एक बार भगवान गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ उज्जैयिनी (वर्तमान में उज्जैन) के राजा Bharthari महाराज के दरबार मे पहुंचे। राजा Bharthari ने गुरु गोरखनाथ का विधिवत स्वागत सत्कार और सेवा की। राजा की इस सेवा से भगवान गोरखनाथ बहुत खुस हुए।
गुरु गोरखनाथ जब अपने शिष्यों के साथ वापस जाने लगे तो राजा ने उनको श्रद्धापूर्ण नमन किया। गोरखनाथ उसके अभिवादन से बहुत ही प्रस्सन हुए। तभी उन्होने अपने झोले से एक फल बाबा भरतरी को दिया और कहा यह अमरफल है। जो इसे खा लेगा, वह कभी बूढ़ा नही होगा, न ही कभी रोगी होगा, और हमेशा जवान बना रहेगा। इसके बाद गुरु गोरखनाथ अलख निरंजन कहते वह से चले गए।
Raja Bharthari ने उस अमरफल को अपनी पत्नी पिंगला जिससे वे अति प्रेम करते थे को दे दिया। जिससे वह हमेशा जवान और सुंदरी बनी रहे और बाबा की सारी कहानी बताई। लेकिन रानी उस नगर के एक कोतवाल से प्यार करती थी। रानी ने उस फल को अपने प्रेमी कोतवाल को दे दिया और फल की विशेषता भी बताई।
उस फल को लेकर कोतवाल जब महल से बाहर निकला और अपनी परम मित्र राजनर्तकी को दे दिया और उस राजनर्तकी ने फल को अपने पास रख लिया। राजनर्तकी ने सोचा कि कौन मूर्ख यह जीवन लंबा जीना चाहेगा।
मैं अब जैसी हूं, वैसी ही ठीक हूं। लेकिन हमारे राज्य का राजा बहुत अच्छा है क्यों न ये फल उनको ही दे दिया जाये और यह सोचकर उसने फल राजमहल जाकर राजा को दे दिया और अमरफल की विशेषता सुनाई, बाबा Bharthari फल को देखते ही पहचान गए और स्तब्ध रह गए। बहुत पूछताछ करने पर सब बात सामने आयी, तो बाबा को उसी छण से वैराग्य हो गया।
सब राजपाट को त्याग कर Bharthari बाबा ने बैराग्य धारण किया और गुरु गोरखनाथ की शरण में तप करने चले गए।
बाबा भर्तृहरि का मंदिर (Raja Bharthari Mandir)
बाबा भर्तृहरि का मंदिर – अलवर सरिस्का
बाबा Bharthari का मंदिर दिल्ली से 250 किलोमीटर दूर सरिस्का के जंगलो में स्थित है। यह मंदिर बहुत ही सुन्दर है। इस मंदिर में भृतहरि बाबा की मूर्ति मंदिर के बीचो बीच है जो बहुत ही सुन्दर है, उनके दाहिने तरफ बाबा बजरंगबली की मूर्ति है , उनके सामने बाबा का धुंआ 24 घंटे चलता है, जहाँ से उपको विभूति मिल जाएगी।
इस मंदिर में भर्तृहरि बाबा के सामने शिव परिवार भी स्थापित है। लोग शिव लिंग पर जल अर्पित करते है, और हर हर महादेव का जयकारा लगाते है। इस मंदिर के पीछे बाबा मछन्दरनाथ का मंदिर भी है जो बाबा गोपीनाथ और बाबा गोरखनाथ के गुरु थे। मन्दिर के पीछे एक जंगल है और धर्मशाला है और स्नान कुंड भी है, थोड़ा पीछे जाकर आप वह स्थान भी देख सकते है, जहाँ बाबा ने अपना चीमटा पहाड़ में गाड़ दिया था, और वहाँ से गंगा जी प्रकट हुई।
बाबा भर्तृहरि की पवित्र गंगा
एक कथा के अनुसार यहाँ के लोगो को पानी की किल्लत हो रही थी, तब गांव के लोग मिलकर बाबा भर्तहरि के पास गए तथा अपनी समस्या बताई और मदद मांगी। इस पर बाबा ने अपना चीमटा पहाड़ की धरती में गाढ़ दिया, और उससे एक पानी की धरा फुट पड़ी, तब से आज तक वह पानी की धारा आज भी बह रही है।बाबा भर्तहरि द्वारा प्रकट की गई जल की धारा को छोटी पवित्र गंगा कहते है, और भक्तजन इस गंगा में स्नान करते है, और जल का उपयोग पीने और खेतो की सिचाई के लिए करते है।
बाबा मच्छारन्दर नाथ का मंदिर
यहाँ आपको बाबा मच्छारन्दर नाथ के दर्शन होंगे और उनके साथ बाबा गोपी नाथ तथा गुरु गोरखनाथ भी है। आप लोग बाबा के दर्शन करके आशीर्वाद ले।
संस्कृत के कवि
Raja Bharthari संस्कृत के बड़े कवी थे, बैराग्य होने का बाद उन्होंने १०० श्लोक लिखे जिन्हे वैराग्य शतक के नाम से लोग जानते हैं।
बाबा भर्तृहरि संस्कृत के काव्य
बाबा ने अपने शासन कल मैं राज करते हुए भी २ काव्य लिखे जिन्हे हम श्रृंगार शतक और नीति शतक कहते है।
बाबा भर्तृहरि का मेला
बाबा Bharthari का मेला अलवर जिले में सरिस्का के पास भर्तृहरि मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भरता है
बाबा भर्तृहरि धाम का समय
बाबा भर्तृहरि धाम आप कभी भी जा सकते है यह ठहरने के लिए धर्मशाला भी बनी हुई है जिनमे गद्दे का शुल्क मात्र 30 रूप्ये प्रति गद्दा है
मंदिर की आरती सुबह 6:00 बजे और शाम को 7:30 पर होती है
बाबा भर्तृहरि धाम मंदिर की दूरी
बाबा भर्तृहरि धाम सरिस्का के जंगलो में अलवर से 30 km है