महाकुंभ का मेला 12 साल पुरे हो जाने के बाद आयोजित किया जाता है। यह महकुंभ का मेला सबसे बड़ा और प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है। इस मेले में लाखों व करोड़ लोग आते है। माना जाता है कि, जो भी व्यक्ति इस कुंभ में स्नान कर लेता है। उसके सारे पाप मिट जाते है। इतना ही नहीं उसकी सारी मनोकामना भी पूरी हो जाती है। महाकुंभ में विशेष पूजा-अर्चना, यज्ञ और अन्य धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। इस आर्टिकल में महाकुंभ की कथा, क्या है इस मेले का महत्व और भी कुछ इसके बारे में जानेंगे।
महाकुंभ मेले से जुडी कथा
कहा जाता है, जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था तब समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कुंभ यानी कलश लेकर प्रकट हुए थे। देवताओं के संकेत पर इंद्र पुत्र जयंत अमृत से भरा कलश लेकर बड़े भागने लगे और असुर जयंत के पीछे भागने लगे। अमृत कलश की प्राप्ति के लिए देवताओं और दैत्यों के बीच बारह दिन तक भयंकर युद्ध हुआ था। देवताओं का एक दिन मनुष्य के बारह वर्षों के बराबर होता है। इस युद्ध के दौरान जिन-जिन स्थानों पर कलश से अमृत की बूंदे गिरी थी वहां कुंभ मेला लगता है। वहां महाकुंभ का मेला लगने लगा। अमृत की बूंदे इन चार जगहों पर गिरी थी प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन चारों स्थान पर कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है।
महाकुंभ स्नान का महत्व
महाकुंभ में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धूल जाते है। इतना ही नहीं कुंभ से स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा मेले में आध्यात्मिक ज्ञान, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक माना जाता है। कुंभ के मेले में लोग आध्यात्मिक ज्ञान और मानसिक शांति के लिए भी आते है। महाकुंभ में नागा साधु से लेकर अन्य अलग-अलग बड़े-बड़े संत पधारते हैं, जिनका आशीर्वाद लेने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से कुंभ मेला में शामिल होने आते हैं। मेले में छोटे से लेकर बड़े सभी अपनी-अपनी इच्छा लेकर यहाँ आते है।
महाकुंभ का मेला 12 साल बाद ही क्यों लगता है

महाकुंभ मेले इसलिए 12 साल बाद लगता है, क्योंकि कहा जाता है कि कुंभ की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, जब जो अमृत निकला इस अमृत को पीने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध हुआ था। यह युद्ध 12 दिनों तक चला था। यह 12 दिन पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होते है। इस अमृत की बुँदे चार दिशाओं में गिरी थी, जिसके चारों तरफ पृथ्वी है। जब से उन चारों स्थान पर मेला लगने लगा।
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कई ज्योतिषियों का मानना है कि बृहस्पति ग्रह 12 साल में 12 राशियों का चक्कर लगाता है, इसलिए कुंभ मेले का आयोजन उस समय होता है जब बृहस्पति ग्रह किसी विशेष राशि में होता है।
महाकुंभ के मेले में होता है शाही स्नान का महत्व

महाकुंभ के मेले में पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इन नदियों के जल में इस दौरान अमृत के समान गुण होते हैं और सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद कुंभ मेले में स्नान करने से मिलता हैं। इस मेले में विभिन्न अखंडो के साधु-संत शाही स्न्नान करते है। अखाड़ों को विशेष क्रम में स्नान का अधिकार दिया जाता है, जो परंपराओं और उनकी प्रतिष्ठा के आधार पर तय होता है। इन अखंडो में जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा इत्यादि होता है। शाही स्नान करने से पहले साधु-संतों का एक भव्य जुलूस निकला जाता है। यह जुलूस हाथियों, घोड़ों और रथों में सवार होकर निकलता है। शाही स्नान में सबसे पहले नागा साधु स्नान करते है इसके बाद महामंडलेश्वर और अन्य साधु स्नान करते हैं। आम श्रद्धालु शाही स्नान के बाद पवित्र नदी में स्नान करते हैं। शाही स्नान से प्राप्त पुण्य को असंख्य यज्ञों, तपस्याओं और दान के बराबर माना जाता है। यह आत्मा की शुद्धि और मोक्ष का सबसे सरल मार्ग है।
संगम स्नान क्या होता है
प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है। जिस स्थान पर तीनों नदी का मिलन हो रहा है। उस स्थान को त्रिवेणी संगम कहते हैं। इसमें स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में सभी पाप धूल जाते है। हिन्दू धर्म में यह अत्यंत पवित्र स्थल माना गया है। महकुंभ के चलते त्रिवेणी संगम में स्नान का महत्व और बढ़ जाता है।